छठ पूजा: सूर्य उपासना और लोक आस्था का महापर्व
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे सूर्य उपासना का पर्व भी कहा जाता है, जहाँ भक्तगण सूर्य देवता की आराधना कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। छठ पूजा का आयोजन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है, जो मुख्य रूप से चार दिनों तक चलता है। इस वर्ष 2024 में छठ पूजा 6 नवंबर से 9 नवंबर तक मनाई जाएगी। इस पर्व का उद्देश्य सूर्य भगवान को धन्यवाद देना और अपने परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करना है।
छठ पूजा का इतिहास और महत्व
छठ पूजा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णित है। माना जाता है कि यह पर्व महाभारत काल से मनाया जा रहा है। किंवदंती है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने अपने पति की कठिनाइयों से मुक्ति और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य उपासना की थी। साथ ही, रामायण काल में भगवान श्रीराम और माता सीता ने लंका विजय के बाद अपने राज्य की समृद्धि के लिए छठ पूजा की थी। इस प्रकार, छठ पूजा का पौराणिक महत्व और इसकी जड़ें भारतीय संस्कृति में गहरी पैठी हुई हैं।
छठ पूजा में सूर्य भगवान की उपासना का महत्व इस कारण से भी अधिक है कि सूर्य जीवन का आधार हैं। सूर्य के प्रकाश से ही प्रकृति में संतुलन बना रहता है और इसी के कारण जीवन चलता है। छठ पूजा में सूर्य की किरणों का स्वागत करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए प्रार्थना की जाती है।
छठ पूजा की विशेषता
छठ पूजा को “नहाय-खाय” के साथ आरंभ किया जाता है। पहले दिन व्रती (व्रत रखने वाले) स्नान कर पवित्रता के साथ शाकाहारी भोजन करते हैं। दूसरे दिन “खरना” का आयोजन होता है, जिसमें विशेष प्रकार का प्रसाद, जैसे- गुड़ की खीर और रोटी बनाई जाती है। तीसरे दिन “संध्या अर्घ्य” के साथ व्रत रखा जाता है और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। चौथे दिन “प्रातःकालीन अर्घ्य” के साथ छठ व्रत का समापन होता है। इसमें सूर्योदय के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
छठ पूजा का यह पर्व बिना किसी आडंबर और बाहरी सजावट के केवल श्रद्धा, समर्पण और कठिन तपस्या पर आधारित होता है। व्रती नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे खड़े होकर सूरज को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसे करने के लिए कठोर नियमों का पालन किया जाता है, जिसमें उपवास, शुद्धता और निस्वार्थ भक्ति होती है।
छठ व्रत की कठिनाई
छठ पूजा का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें व्रती को लगातार 36 घंटे का निर्जल व्रत रखना होता है। इस दौरान उन्हें जल और अन्न का त्याग करना पड़ता है। ऐसा करने के पीछे यह मान्यता है कि इस कठिन तपस्या से सूर्य देव प्रसन्न होकर व्रती की मनोकामनाएँ पूरी करते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
व्रती अपनी संतान, परिवार और समाज की खुशहाली के लिए यह कठोर व्रत रखते हैं। उन्हें पूरे मन से सूर्य देव की आराधना करते हुए अपने दुखों और तकलीफों को त्यागने का संकल्प लेना पड़ता है। इसका महत्व इस कारण से भी बढ़ जाता है कि व्रती स्वयं अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए यह व्रत करते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठान और सामग्री
छठ पूजा के अनुष्ठानों में विशेष प्रकार की पूजा सामग्री का प्रयोग होता है। पूजा के लिए बांस की टोकरी, दीपक, गन्ने के डंठल, ठेकुआ, फल, नारियल, सुपारी और अन्य प्रसाद की सामग्री का विशेष महत्व होता है। ये सभी वस्तुएं स्थानीय बाजारों में मिलती हैं, और लोग बड़े ही धूमधाम से इनकी खरीदारी करते हैं। छठ पूजा के अवसर पर विशेष प्रकार की गीतें और भजन भी गाए जाते हैं, जो इस पर्व की पवित्रता को और बढ़ा देते हैं।
आधुनिकता के साथ छठ पूजा का स्वरूप
आधुनिकता के इस दौर में भी छठ पूजा का स्वरूप वही है, लेकिन लोग इसे अपनी सुविधाओं के अनुसार मना रहे हैं। पहले लोग नदी या तालाब में ही अर्घ्य अर्पित करते थे, लेकिन अब लोग अपने घरों में भी छठ पूजा का आयोजन करने लगे हैं। छतों पर पानी के टब या बर्तन रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने का रिवाज भी देखा जा रहा है। लेकिन इस पूजा का प्रमुख उद्देश्य प्रकृति और ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करना ही होता है।
वर्तमान समय में छठ पूजा के महत्व को समझते हुए कई राज्य सरकारें भी इसे बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं। विभिन्न स्थानों पर छठ पूजा के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा, सोशल मीडिया के माध्यम से भी इस पर्व की भव्यता को दिखाने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिकता बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस पर्व में न केवल सूर्य देव बल्कि माँ प्रकृति के प्रति भी श्रद्धा व्यक्त की जाती है। छठ पूजा के माध्यम से लोग अपनी आस्था और भक्ति को नए आयाम देते हैं और परिवार तथा समाज की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। इस पर्व के दौरान लोग अपने मतभेदों को भुलाकर एक साथ सूर्य भगवान की आराधना में लीन हो जाते हैं।
अतः छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का प्रतीक है।